हाई बीपी के मरीज न करें कपालभाति प्राणायाम

हाई बीपी के मरीज न करें कपालभाति प्राणायाम

योग गुरु सुनील सिंह

भाग-दौड़ और प्रतियोगितावादी दुनिया में यूं तो शरीर को स्वस्थ बनाए रखना मुश्किल है लेकिन यदि व्यक्ति अपनी व्यस्तताओं में योग और प्राणायाम को भी शामिल करे तो यह बेहद लाभप्रद साबित हो सकता है। हमारे योगियों ने हमें सिखाया है कि हमारा शरीर पंच महाभूत; पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है। शरीर में इन पंच महाभूतों का संतुलन बनाए रखने के लिए हम अपने आहार और योग में सामंजस्य बिठाकर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं। आज हम इस आलेख में तीन महत्‍वपूर्ण प्रायाणामों, उनके लाभ और  उनसे जुड़ी सावधानियों की चर्चा करेंगे।

कपालभाति प्राणायाम

कपाल माने माथा और भाति का अर्थ है रोशनी, ज्ञान व प्रकाश। योगियों ने कहा है कि इस प्राणायाम से हमारे मस्तिष्क या फिर सिर के अग्र भाग में रोशनी प्रज्जवलित होती है और हमारे अग्र भाग की शुद्धि होती है। कपालभाति प्राणायाम षटकर्म की क्रिया के अन्‍तर्गत भी आता है। इसे कपाल शोधन प्राणायाम भी कहा जाता है।

विधि: ज़मीन पर पद्मासन या फिर सुखासन की अवस्था में बैठे फिर पूरे बल से नासिका से सांस को बाहर फेंके, श्वास को लेने का प्रयास न करें, श्वास स्वतः आ जाएगा। जब हमारा श्वास बाहर निकलेगा उसी समय हम अपने पेट का संकुचन करेंगे। पहले धीरे-धीरे इसका अभ्यास करें, उसके बाद धीरे-धीरे श्वास छोड़ने और पेट के संकुचन की गति बढ़ा दें। शुरु-शुरु में नए अभ्यासी कम से कम 20 चक्रों का अभ्यास करें। एक सप्ताह उपरांत 50 चक्रों तक अभ्यास को बढ़ा दें। ध्यान रहे कमर और गर्दन सीधी हो, आंखें बंद (या खोलकर भी अभ्यास कर सकते है) हो। दोनों हाथ ज्ञान मुद्रा में हो।

लाभ व प्रभाव: इस  प्राणायाम के अभ्यास से नाक, गले एवम् फेफड़े की सफाई होती है, चेहरे पर कांति, लालिमा और ओज आता है। इसे करने से चेहरे की झुर्रियां, दाग, फुन्सी आदि दूर होते हैं। कपालभाति प्राणायाम से ईडा नाड़ी और पिंगला नाड़ी की शुद्धि होती है। दमा, तपेदिक, टाईसिल / टॉन्सिल आदि के विकार दूर हो जाते हैं। महिलाओं में गर्भाशय के विकार, मासिक धर्म संबंधी कठिनाइयां और गर्भाशय जनित दोष दूर होते है। यह प्राणायाम पाचन संस्थान को मजबूत बनाता है तथा नर्वस सिस्टम में संतुलन लाता है। इससे कपाल की नस-नाड़ियों की शुद्धि होती है, इसलिए इसके अभ्यास से ध्यान की एकाग्रता बढ़ती है, जिससे व्यक्ति तनावमुक्त होता है।

सावधानियां: हृदय रोगी, उच्च रक्तचाप के रोगी, मिर्गी स्ट्रोक, हार्निया और अल्सर के रोगी तथा गर्भवती महिलाएं इसका अभ्यास ना करें।

विशेष: चक्कर आने या फिर सिरदर्द की स्थिति में कुछ देर आराम करें और पुनः इसका अभ्यास करें। इसे करते हुए हर दिन कम से कम 15 गिलास पानी अवश्य पियें।

नाड़ी शोधन (लोम-विलोम) प्राणायाम

योगियों ने इस प्राणायाम का नाम नाड़ी शोधन प्राणायाम या फिर लोम-विलोम प्राणायाम इसलिए रखा है क्योंकि इसके अभ्यास से हमारे शरीर की 72 हज़ार नाड़ियों की शुद्धि होती है।

विधि: सर्वप्रथम पद्मासन में स्थित हो जाएं। उसके बाद दाएं हाथ के अंगूठे से दाहिने नासिका छिद्र को बन्द करें, तत्पश्चात् बाईं नासिका से धीरे-धीरे बिना आवाज़ किए श्वास को अंदर भरें। फिर दायें हाथ की मध्यमा और अनामिका अंगुली से बाईं नासिका को बंद करें और दाईं नासिका से सांस को धीरे-धीरे बाहर निकाल दें। फिर दाहिने नासिका से गहरा श्वास अंदर भरें और दाएं हाथ के अंगूठे से दाईं नासिका को बंद कर बाईं नासिका से सांस को बाहर निकाल दें। यह इस प्राणायाम का एक चक्र पूरा हुआ। शुरू-शुरू में इसके 10 चक्रों का अभ्यास अवश्य करें। कुछ समय पश्चात जब आप अभ्यस्त हो जाएं तो आप श्वास को 1, 4, 2 के अनुपात से भरे और छोड़ें। यानी श्वास भरते वक़्त 1 गिनती तक भरें, 4 गिनती तक श्वास को भीतर रोकें और फिर 2 गिनती तक श्वास को बाहर निकालें। ध्यान रहे, कमर, गर्दन और मेरुदण्ड बिल्कुल सीधा होना चाहिए।

लाभ व प्रभाव: इस प्राणायाम के अभ्यास से हमारे शरीर में वात, पित्‍त और कफ़ के दोष दूर होते हैं। 72 हजार नाड़ियों की शुद्धि होती है तथा रक्त स्वच्छ होता है। हमारे शरीर द्रव्य बाहर हो जाते हैं, जठराग्नि और चर्म रोग दूर होते है, चेहरे पर लालिमा आती है। साधक रोग रहित हो जाता है। हमारे पेन्क्रियाज ग्रन्थि, यकृत और प्लीहा की मसाज होती है। आंखों की रोशनी बढ़ती है और नेत्रों के विकार दूर हो जाते हैं। हमारे शरीर को ज़्यादा से ज़्यादा ऑक्सीजन प्राप्त होती है। विचारों में सकारात्मकता आती है तथा जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदल जाता है।

सावधानियां: इस प्राणायाम को सभी लोग कर सकते हैं। इसे करते समय मुंह से श्वास नहीं लेना चाहिए। किसी भी प्रकार की असुविधा होने पर प्राणायाम का अभ्यास न करें। श्वास की गति धीमी रखें। कमर, पीठ, रीढ़ और गर्दन बिल्कुल सीधी रखें।

 

शीतली प्राणायाम

जिस प्राणायाम के अभ्यास से शीतलता का आभास हो या फिर अत्‍यधिक शीतलता की अनुभूति हो उसे शीतली प्राणायाम कहते हैं।

विधि: पद्मासन या सुखासन में बैठ जाएं। दोनों हाथ की अंगुलियों को ज्ञान मुद्रा में दोनों घुटनो पर रखें, आँखें बन्द करें। उसके बाद अपनी जीह्वा (जीभ) को नली के समान बना लें अर्थात् गोल बना लें और मुंह से लंबी गहरी श्वास आवाज के साथ भरें। जितनी देर श्वास को आसानी से रोक सकते हैं, उतनी देर श्वास रोकें फिर धीरे-धीरे नाक से श्वास को बाहर निकाल दें। यह इस प्राणायाम का एक चक्र पूरा हुआ, कम से कम 10 चक्रों का अभ्यास करें।

लाभ व प्रभाव: इस प्राणायाम के अभ्यास से बल एवं सौन्दर्य बढ़ता है। रक्त शुद्ध होता है। भूख, प्यास, ज्वर (बुखार) और तपेदिक पर विजय प्राप्त होती है। शीतली प्राणायाम जहर के विनाश को दूर करता है। अभ्यासी में अपनी त्वचा को बदलने की सामर्थ होती है। अन्न, जल के बिना रहने की क्षमता बढ़ जाती है। यह प्राणायाम अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, हृदयरोग और अल्सर में रामबाण का काम करता है। चिड़चिड़ापन, बात-बात में क्रोध आना, तनाव तथा गर्म स्वभाव के व्यक्तियों के लिए विशेष लाभप्रद है।

सावधानियां: निम्न रक्तचाप वाले, दमा की अंतिम अवस्था वाले और ज़्यादा कफ वाले रोगी इस प्राणायाम का अभ्यास न करें। शीतकाल में इसके अभ्यास की मनाही है।

विशेष: शीतकारी प्राणायाम के सारे लाभ इस प्राणायाम में भी प्राप्त किये जा सकते हैं। शीतकारी प्राणायाम में मुंह बंद कर दंत पंक्तियों को मिलाकर मुंह से श्वास लेते हैं और नाक से ही श्वास छोड़ते हैं। प्रदूषित जगह में इस प्राणायाम का अभ्यास न करें।

योग सेक्‍शन में और पढ़ें

शरीर के तकरीबन हर अंग के लिए लाभदायक हैं ये तीन योगासन

योग और आयुर्वेद के जरिये दूर करें मोटापा

योग के नाम पर परोस रहे हैं अधकचरा ज्ञान

 

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।